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वो 5 फिल्में जिन्हें मिलना चाहिए था नेशनल अवार्ड

हाल ही में नेशनल फ़िल्म अवार्ड की घोषणा की गई। तमिल भाषा की सूराराई पोट्टरू ने बेस्ट फिल्म, बेस्ट एक्टर (मेल), बेस्ट एक्टर (फीमेल) सहित कुल 5 अवॉर्ड्स अपने नाम किए। हिंदी फिल्मों की बात करें तो अजय देवगन को तान्हाजी के लिए बेस्ट एक्टर (मेल) का अवार्ड मिला है।

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नेशनल फिल्म अवॉर्ड्स पहली बार 1953 में दिए गए थे। तब से अब तक कुल 13 बॉलीवुड फिल्मों ने नेशनल अवार्ड जीते हैं। बॉलीवुड की किसी फ़िल्म के तौर पर पहली बार सोहराब मोदी की ‘मिर्ज़ा ग़ालिब’ को 1954 में बेस्ट फिल्म का अवार्ड मिला था। हाल फिलहाल में बॉलीवुड से आख़िरी बार बेस्ट फिल्म 2012 में तिग्मांशु धूलिया की पान सिंह तोमर को मिला था। इन सबके बीच कई फिल्में ऐसी भी हैं जो नेशनल अवार्ड जीतने में असफल रहीं लेकिन फिल्में जानने समझने वाले एक बड़े वर्ग का मानना है कि इन फिल्मों को नेशनल अवार्ड दिया जाना चाहिए था। ऐसी ही 5 फिल्मों पर हम नजर डालते हैं –

1.) माई नेम इज़ ख़ान:

इस लिस्ट की पहली फिल्म के तौर पर हम माई नेम इज़ ख़ान को रखेंगे। माई नेम इज़ ख़ान 2010 में आई थी। उस समय फ़िल्म को देश में कई विरोध प्रदर्शनों से गुजरना पड़ा था। महाराष्ट्र में कई जगह फिल्म की स्क्रीनिंग बाधित रही थी। इसका निर्देशन करन जौहर ने किया था और इसमें शाहरुख खान और काजोल मुख्य भूमिकाओं में थे। फिल्म अमेरिका में 2001 में हुए 9/11 के बाद की घटनाओं पर आधारित है। इस फ़िल्म को एक भी कैटेगरी में नेशनल अवार्ड नहीं मिला था। मशहूर किताब द अल्केमिस्ट के ब्राजीलियन लेखक पाउलो कोएल्हो के अनुसार इस फिल्म को ऑस्कर मिलना चाहिए था। इससे हम यह तो समझ ही सकते हैं कि फिल्म ऑस्कर नहीं भी तो नेशनल अवार्ड की हकदार तो थी ही।

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2.) सलाम बॉम्बे:

इस फिल्म का निर्देशन मीरा नायर ने किया था। यह फिल्म 1988 में आई थी। इस फिल्म में नाना पाटेकर, रघुबीर यादव जैसे कलाकार थे। इसकी कहानी मुंबई के एक रेड लाइट एरिया और उसमें बड़े हो रहे बच्चों के जीवन पर केंद्रित है। कुछ सेकेंड्स की भूमिका के तौर पर इसमें दिवंगत कलाकार इरफ़ान भी मौजूद हैं। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से तब तुरंत के पासआउट इरफान की यह पहली स्क्रीन अपीयरेंस थी। मीरा नायर ने बाद में इरफान के साथ द नेमसेक नाम की फिल्म बनाई। जिंदगी ना मिलेगी दोबारा जैसी फिल्म बनाने वाली ज़ोया अख़्तर का कहना है कि उनकी फिल्मों में आने की वजह यही फिल्म है।

3.) स्वदेस:

2004 में आई इस फिल्म का निर्देशन आशुतोष गोवारिकर ने किया था। इसकी केंद्रीय भूमिकाओं में शाहरुख खान और गायत्री जोशी हैं। शाहरुख का किरदार इसमें नासा में काम कर रहे एक ऐसे वैज्ञानिक का है जो अपने गांव आता है, जहां अभी तक बिजली भी नहीं पहुंची है। वह गांव की बदहाली देखता है और नासा की नौकरी छोड़कर गांव में बिजली लाने के लिए काम करने लगता है। शायद ही कोई होगा जो इस बात से इंकार करेगा कि इस फिल्म को नेशनल अवार्ड मिलना ही चाहिए था।

4.) तुम्बाड:

2018 में आई इस फ़िल्म का निर्देशन राही अनिल बरवे ने किया था। अपनी फिल्म शिप ऑफ थिसियस के लिए नेशनल अवार्ड जीत चुके आनंद गांधी भी इस फिल्म के निर्देशन से जुड़े थे। तुम्बाड को बॉलीवुड की बेस्ट हॉरर फिल्म बताया जाता है। इसका बैकग्राउंड स्कोर भी कमाल का है। बहुत लोगों को उम्मीद थी कि बेस्ट फीचर के लिए नेशनल अवार्ड में तुम्बाड पर विचार किया जाएगा, लेकिन यह फिल्म ज्यूरी का ध्यान अपनी तरफ खींचने में नाकामयाब रही।

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5.) पिंक:

2016 में रिलीज़ हुई फ़िल्म पिंक का निर्देशन अनिरुद्ध रॉय चौधरी ने किया था। यह फिल्म बड़े स्टार्स से भरी हुई थी। इसमें तापसी पन्नू, अमिताभ बच्चन, पियूष मिश्रा जैसे बड़े कलाकार थे। यह फिल्म महिला सुरक्षा और समाज में व्याप्त पितृसत्तात्मक सोच को उजागर करती हुई एक बेहतरीन फ़िल्म थी। कोई भी इससे मना नहीं करेगा कि पिंक में नेशनल अवार्ड जीतने का माद्दा था लेकिन यह फिल्म ऐसा करिश्मा नहीं कर सकी।

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